असम रॉयल ग्लोबल यूनिवर्सिटी
(आरजीयू) ने एआईसीटीई-वाणी योजना के अंतर्गत 15 से 16 सितंबर 2025 तक दो दिवसीय
राष्ट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन किया, जिसका विषय था "लचीला भविष्य: ऊर्जा, स्थिरता और जलवायु कार्रवाई
के लिए भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ"। उल्लेखनीय रूप से पूरा सम्मेलन असमिया भाषा में आयोजित किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन कल दीप
प्रज्वलन और स्वागत भाषण के साथ हुआ। मुख्य अतिथि डॉ. हीरक रंजन दास, नवाचार प्रबंधक, एआईसीटीई (एनईआर) ने समन्वयक
और आयोजन समिति को अपनी शुभकामनाएँ दीं और स्थायी भविष्य के मार्ग को आकार देने
में स्वदेशी ज्ञान की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
इस संदर्भ में बोलते हुए एआईसीटीई वाणी सम्मेलन की समन्वयक डॉ. सास्वती
बोरदोलोई ने कहा, "मेरा दृढ़ विश्वास है कि एआईसीटीई वाणी का सार हमारी भारतीय ज्ञान
प्रणालियों की शक्ति को पुनः खोजने और हमारी विविध भाषाओं को स्वर देने में निहित
है। इस मंच के माध्यम से हम न केवल विरासत का जश्न मना रहे हैं, बल्कि स्थिरता, नवाचार और वैश्विक मान्यता के
मार्ग भी प्रशस्त कर रहे हैं।"
सम्मेलन में डॉ. लुत्फा हानुम
सलीमा बेगम (कॉटन विश्वविद्यालय), डॉ. अभिनंदन सैकिया (टीआईएसएस, गुवाहाटी), कमलजीत मेधी (इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड), डॉ. निर्माली गोगोई (तेजपुर
केंद्रीय विश्वविद्यालय), डॉ. मंजिल हजारिका (कॉटन विश्वविद्यालय), डॉ. भास्कर कुमार काकती (आईआईटी जोधपुर), कृषि-उद्यमी समीर बोरदोलोई और
सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी अभिजीत राभा सहित कई प्रतिष्ठित संसाधन व्यक्ति
एकत्रित हुए। विद्वानों, पेशेवरों और व्यवसायियों ने दो दिनों के दौरान ज्ञानवर्धक सत्रों और
शोध-पत्र प्रस्तुतियों में भाग लिया।
पहले दिन ऊर्जा, प्रकृति और स्थिरता के लिए भारतीय ज्ञान
प्रणालियाँ; पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान; जलवायु लचीलेपन के स्वदेशी
मार्ग; और सतत वास्तुकला एवं
अर्थव्यवस्था जैसे विषयों पर चर्चाएँ केंद्रित रहीं। साथ ही, विद्वानों ने पारंपरिक ज्ञान
और आधुनिक चुनौतियों के अंतर्संबंधों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए।
सम्मेलन के दूसरे दिन की
शुरुआत "लचीला भविष्य: एक चिंतन" शीर्षक से एक पूर्ण सत्र के साथ हुई।
16 सितंबर के सत्र भारतीय ज्ञान प्रणालियों और विज्ञान: एक सतत भविष्य की
संभावनाएँ; ऊर्जा, सततता और आईकेएस के सांस्कृतिक अनुप्रयोग; ऊर्जा परिवर्तन में हरित उद्यमिता और स्वदेशी
नवाचार; और नीति एवं विकास के लिए पारंपरिक ज्ञान का आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकरण
पर केंद्रित थे।
समापन सत्र में शिक्षा, अनुसंधान और सतत विकास
नीतियों में भारतीय ज्ञान प्रणालियों को मुख्यधारा में लाने की तत्काल आवश्यकता पर
बल दिया गया। दो दिवसीय विचार-विमर्श का समापन जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा परिवर्तन और सांस्कृतिक
स्थिरता की वैश्विक चुनौतियों से निपटने में एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में
स्वदेशी ज्ञान को पुनर्जीवित करने के सामूहिक आह्वान के साथ हुआ।
